समाज में सांप और सांप

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

"भाई बताते बड़ा डर लग रहा है। इस बीच एटीएम में क्या हुआ मालूम?"

"देखो भाई मेरे पास दो हजार के नोट नहीं हैं इसलिए मुझे बैंक और एटीएम से फिलहाल कोई काम नहीं है।"

"पूरी बात तो सुनते नहीं हो बस बीच में टोक देते हो। इसलिए तो भाभी से डांट पड़ती रहती है।"

"अच्छा! बता हुआ क्या है?"

नैनीताल में एक एटीएम केंद्र में कार्ड रखकर पिन नंबर दबाते ही संपोले यानी सांप के बच्चे रेंगते हुए निकल आए। फिर क्या था? लाइन में खड़े सब लोग भाग खड़े हुए।"

"क्या सचमुच? अगर ऐसा है तो मुझे लगता है कि पुराने जमाने के धन की निधियों को नाग बंधन से तालाबंदी कर देते थ। ऐसा कुछ तो एटीएम के साथ नहीं हुआ?"

"आज के जमाने में यह सब कहां है भैया?"

"क्यों नहीं है? हमारी आंखों के सामने ही विष नाग  कॉलर ऊंची करते, कानून को पैरों तले रौंदते, फुम्फकारते फिर रहे हैं कि नहीं?"

"पराया माल सांप की तरह होता है, कहते हैं न, जो धन एटीएम में है वह भी तो परायों का धन है। शायद इसलिए सांप सपोले आ गए होंगे"

"छोटे सांप सपोले देख कर ऐसा करोगे तो कैसा होगा छोटू! हमारे यहां करोड़ों रुपयों पर फन लगाए कई कालनाग बैठे हैं। जनतंत्र को निगलकर आराम से पचा लेने वाले अजगर हैं। पहाड़ों और जमीनों को गन्ने की तरह चूस कर कब्ज़ा लेने वाले एनाकोंडा हैं। सवाल पूछने पर तुरंत जहर फेंक कर डंसने वाले  विष सर्प हैं। कानून को अपना काम न करने देने वाले गुंडे मवाली अधिकारियों को भी अपना काम नहीं करने दे रहे हैं। ये सारे सरीसृप किस श्रेणी में आते हैं कि नहीं।"

"रह रह कर अपने विषदंत दिखाते इन सांपों को वश में कर सकने वाला क्या कोई नहीं?"

"हमारी भूमि कर्म भूमि है। शायद इसलिए कई बार उन्हें उनके कर्म पर छोड़ देना चाहिए। बहुत सी बातों को समय ही अपना जवाब दे सकता है।"

मतलब कालनागों की समस्या का भी काल या समय ही समाधान होगा। इस बीच विष से मरे हुए लोगों का क्या होगा?"

"अधिकार रूपी मणि जब तक उनके पास है, वे सारे सांप फन उठाए प्रतिकार की ज्वाला में जलते हुए अपनी मर्जी से डोलते खेलते रहेंग रहेंगे। पांच साल पूरे होने पर ही उनके जहरीले दांत उखाड़े जा सकते हैं। इससे पहले उन्हें बांध नहीं पाएंगे। उनके विष का तोड़ नहीं ला पाएंगे।"

" ऐसा कहोगे तो कैसे होगा? बिल में छिपे चूहों को जब चाहे तब पकड़ सकते हैं तो क्या जनता के बीच विचरते सांपों को क्यों बस में नहीं कर सकते?"

"ऐसा नहीं है। पहाड़ की तरह अधिकार, सत्ता का साथ, समर्थन और समर्पण हो तो थोड़ा समय लग सकता है। अवरोध आ सकते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि देर कर सकते हैं पर अंत में पापों का बिल टूटे बिना, अराजकता फैलाते एनाकोंडाओं को खत्म किए बिना और सत्ता अधिकार पर तलवार की गजल गिरे बिना यह सब संभव नहीं है।"

"तथास्तु जनता को सख्त दादी सताते सताती पीड़ा से मुक्ति मिले यही कामना है।"

डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)!

9394290204