विकास बढ़त और हम

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

"भाई! गैस लगातार बढ़ रहा है। परेशान हूं बहुत।"

" ऊल जुलूल चीजें खाएगा दिन रात तो गैस नहीं बढ़ेगा, पगले! चाट वाट, टिकिया, चना मसाला क्या-क्या खाता रहता है। ऐसा कर किसी  गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट से मिल। अपनी समस्या बता। बस ठीक हो जाएगा।" 

"भाई! आप भी न! मेरी पूरी बात सुने बिना व्हाट्सएप के ज्ञानियों की तरह अपनी ही बोले जा रहे हैं।

" यह व्हाट्सएप ज्ञानियों की क्या बात है मेरे साथ?  गैस के बारे में कहते हो और बोलूं तो बस अपनई हांकते हो।" "मैं गैस की बात कर रहा हूं - रसोई गैस की, एलपीजी सिलेंडर की।"

"अच्छा ईंधन गैस यानी एलपीजी की बढ़ती कीमतों के बारे में कह रहे थे! तो गैस के बढ़ने की बात क्या थी? ईंधन गैस के सिलेंडर की कीमत बढ़ रही है ऐसा कहते।"

"आप भी ना भाई हमारे वित्त मंत्री जैसे हो  जाते हो कभी कभी। वे कहती हैं हम डीजल,पेट्रोल, एल पी जी  वही ईंधन गैस की कीमतें और कम नहीं कर सकते।  यह तो हमसे पहले वाली सरकारों का पाप है, जो अब तक धो धोकर  सत्ता की गंगा को हम मैला कर चुके हैं।"  

"कम नहीं कर सकते तो बढ़ा कैसे सकते हैं"

"भाई! उनका लक्ष्य है एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत एक हज़ार रुपये कर दें ताकि चिल्हर की झंझट न हो। सिलेंडर आया ₹ एक हज़ार थमा दिए। इसी तरह पेट्रोल और डीजल की कीमतें भी दोहरा शतक करने का इरादा भी है। तभी तो 2016 से ₹200 की नोट का चलन भी किया जा चुका। वहां भी चिल्हर का झंझट खत्म हो जाएगा।"

"सभी की कीमतें बढ़ रही हैं, महंगाई आसमान छू रही है और तुम सिर्फ एलपीजी गैस की कीमत को लेकर रो रहे हो?"

"भाई सारे कारोबारों में पेट्रोल, डीजल और ईंधन गैस का ही बोलबाला है। ये तीनों धुरियां है जिस पर महंगाई का बाजार चलता है।"

"वह तो ठीक है। महंगाई के बढ़ते कम चीजें खपत कर रहे हैं। लगता है अब दोनों जून का खाना  एक ही वक्त बनाना होगा और खाना होगा।"

"जून ही नहीं जुलाई से  फिर मई तक सारे महीने यही सब करना होगा। अच्छे दिन तो आ ही गए।"

"वह कैसे?"

"किसी से कहो कि महंगाई बढ़ गई है, ऐसा हुआ, वैसा हुआ तो क्या कहता है? वह आश्चर्यचकित होकर "अच्छा" कहता है और यही अच्छा अच्छा करते-करते अच्छे दिन आ गए ना।" 

"चंपकलाल!  तुम भी न बिल्कुल महामहिम नेताओं से हांकते हो और ऊपर से ज्ञानी होने की कथा बांचते हो बंधु! अच्छे दिन यानी जनकल्याण सर्वोपरि हो। लोग समस्याओं, महंगाई, रोगों से दूर होकर सुविधामय जिंदगी बिताएं, न कि  अच्छा-अच्छा कहकर लजाएं। किसी एक या दो तबके के लोग ही नहीं, सारी जनता को समदृष्टि से सुविधाएं मिले और सहज मिले तभी आपके अच्छे दिन कहलायेंगे।"

"भाई आप भी एक साथ में कितना कुछ अच्छा कह गए। सभी की सोच में अच्छा-अच्छा भर दें और दो चार विषय अपने पास तैयार रखें ताकि जनता का ध्यान भटकाने में कामयाबी पा सकें तभी ना नेताओं के अच्छे दिन होंगे।" "अब सही पकड़े हो! अच्छे दिन आ गए या आ रहे हैं या आएंगे यह नारा  हमारे लिए नहीं, बल्कि नेताओं के लिए और वह भी सत्ताधारी नेताओं के लिए ज्यादा है।"

डॉ. टी. महादेव राव

विशाखापटनम। (आंध्र प्रदेश)

9394290204