युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
अनकही ही रह जाती हैं कितनी ही कविताएं
क्यों न उनके हिस्से में हम नए ख़्याल लिख दें !!
आजकल रद्द हो चुकी हैं तितलियों की उड़ानें
क्यों न उनके हिस्से में एक आसमान लिख दें !!
हर किसी को कहां मिला मन के मुताबिक़ जहां
क्यों न उनके हिस्से में मनचाहा किरदार लिख दें !!
सुनो, नेकियां तो उनकी कभी सराही नहीं गईं
क्यों न उनके हिस्से में एक अलग खिताब लिख दें !!
वो सहती रही चुपचाप किस्मत की लाचारियां
क्यों न उसके हिस्से में ख़ुशिया बेहिसाब लिख दें !!
बने रहे जो उम्रभर सिर्फ और सिर्फ नींव के पत्थर
क्यों न उनके हिस्से में ऊंची एक मीनार लिख दें !!
व्यस्त ही रहा वो ताउम्र दुनिया की उलझनों में
क्यों न उसके हिस्से में मन की बातें चार लिख दें !!
वो जो प्रेम की खातिर भटकते रहे दर-ब-दर ही
क्यों न उनके हिस्से में एक 'मुलाक़ात' लिख दें !!
और,,
कब लिखते रहेंगे हम एक दूसरे को कविताओं में
बस अगर चले अपने हिस्से में हम दीदार लिख दें !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश