युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
धीर धरो मन मेरे ऐसे न घबराया करो
अभी फिसल कर थोड़ा सम्भलें हो अभी दौड़ना बाकी है
राह होंगे दुर्गम बहुत या चुभते पैरों मे कांटे हो
न देख जख्मी पाँव को अभी मंजिल को पाना बाकी है
नज़र न आये राह तुमको, चारो ओर घना अंधेरा हो
एक एक कदम बढ़ता जा, अभी सूरज का उगना बाकी है
बेशक मन घबराया हो, पर सूरज सा तेज रखना चेहरे पर ,
चांदनी सी शीतलता रख मन में अपने,
अभी सूरज के तेज तपन मे जलना बाकी है
धीर धरो मन मेरे इतनी अधिकता ठीक नही
रोक लो हृदय की बेचैनी आँखों की वीरानियां,
पैसो से है प्यार सभी को, अभी सच्चा मीत मिलना बाकी है
धीर धरो मन मेरे संघर्ष भरा ये जीवन है,
सागर की लहरों सी हैं परेशानियां,
अभी समुंदर की गहराई आँकना बाकी है
धीर धरो मन मेरे..धीर धरो..
स्वरचित और मौलिक
सरिता श्रीवास्तव 'सृजन'
अनूपपुर मध्यप्रदेश