युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
यकीन नहीं होता न !!
मुझे भी कहां हुआ था !!
नहीं जानती थी,,मिलोगे इस तरह
नाउम्मीदी और,,,
असंभवताओं की बंजर जमीं पर
सहसा उग आओगे
गुलमोहर और पलाश की तरह
सघन और भरपूर,,,
कि जिनका होना ही एक सुकून है !!
शायद इसीलिए
तुम्हें मिलने के पहले की भी
वो सारी की सारी कविताएं
सिर्फ तुम्हारे लिए ही तो लिखी थी मैंने !!
अब क्या कहूं
इस "आने" को कि ,
तू आ चुका था
आने से बहुत पहले ही !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश