कहो कैसे नव-वर्ष मनाएं

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

कहो कैसे नव-वर्ष मनाएं, 

सिसक रही है मानवता,

दम घुटता इंसानों का,

प्रेम पाप के तुल्य लगे,

घृणा है चहूं और जगे,

दानवता है पंख फैलाए,

कहो कैसे नव-वर्ष मनाएं‌। 

बगिया को सींच रहा माली,

पत्ता-पत्ता, डाली-डाली,

बड़े जतन से आस लिए,

मन में एक विश्वास लिए,

कलियां पहले ही मुरझाएं,

कहो कैसे नव-वर्ष मनाएं।

यह कैसा घोर अंधेरा है,

दुर्योधन का बसेरा है,

कृष्ण को ढूंढती हैं अंखियां,

कहां हुई हैं गलतियां,

द्रोपती यह समझ ना पाए,

कहो कैसे नव-वर्ष मनाएं।

क्या भारत यही अपना है,

यही गांधी का सपना है,

कैसे बेटियां आगे बढ़ें,

हर पथ पर रावण हैं खड़े,

वेश बदल कर फैलाए,

कहो कैसे नव-वर्ष मनाएं।

केवल बातें नहीं क्रांति हो,

शोर नहीं अब शांति हो,

भौतिक गलियों से लौट चलें,

संस्कारों में फिर से ढलें,

यही लता संदेश सुनाएं,

तभी हम सब नव-वर्ष मनाएं।

स्वरचित 

रंजना लता

समस्तीपुर, बिहार

9835838926