युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
किसी को हिन्दू होने पर,
मुस्लिम होने पर,
ईसाई होने पर,
सिख होने पर,
बौद्ध होने पर,
जैन, पारसी होने पर,
कुछ न कुछ होने पर गर्व है,
किसी को जाति पर,
किसी को संपत्ति पर,
किसी को नौकरी पर,
तो किसी को राजनीतिज्ञ होने पर,
हद से ज्यादा गर्व है,
मगर आज तक मैंने नहीं देखा
गर्व करते हुए अपने इंसान होने पर,
क्या इंसानियत का कोई मोल नहीं,
सब एक सुर में बजाये
क्या ऐसा कोई ढोल नहीं,
हर तोड़ने वाली बातें या उन्माद
लोगों को खुशी महसूस कराता है,
क्या वे कह सकते हैं कि धरती गोल नहीं,
दूसरों की खुशियों पर
हर्षित हुआ जाये ऐसा माहौल नहीं,
क्यों?क्यों?क्यों?
हम इतने स्वार्थी क्यों हो रहे हैं,
औरों की राहों में
कांटे क्यों बो रहे हैं,
मानाकि ऐसा कर
आपाधापी वाली जिंदगी में
आगे बढ़ सकते हैं,
मगर मत भूलिये
आपके बिछाये कांटें
आपके पैरों में भी गड़ सकते हैं,
विद्वान बनो, नादान बनो,
पर सबसे पहले इंसान बनो।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग