युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
सुबहों को व्यस्त ही रखा, दुपहरियां थकी-थकी सी रही,
"कुछ" जो न कह सकी, इन उदास शामों से क्या कहूं !!
चुन-चुनकर रख लिए थे जब, कुछ पल "सहेज कर",
वो जो ख़र्चे ही नहीं कभी, उन हिसाबों का क्या कहूं !!
न तुमने कुछ कहा कभी, मैं भी चुप-चुप सी ही रही,
हर बार अव्यक्त जो रहा, उन एहसासों का क्या कहूं !!
यूं तो गुज़र ही रहे थे हम-तुम , बगैर ही कुछ कहे-सुने,
अबकि जब मिलें , छूटे हुए उन जज्बातों से क्या कहूं !!
हां, है कोई चांद का दीवाना, कोई पूजा करे सूरज की,
वो जो भटकते फिर रहे, मैं उन टूटे तारों से क्या कहूं !!
न "ख़त" का ही इंतजार था, और न किसी "फूल" का
'मनसी' लिखी एक कविता, खाली लिफाफों से क्या कहूं !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश