युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
तुलसी मात्र एक पौधा नहीं आस्था और विश्वास है,
तुलसी स्त्रीत्व की दृढ़ मिशाल है।
दानव कुल में जन्मी,विष्णु भक्त थी वृंदा,
नाम तुलसी दिया गया इन्हें,हरि कृपा से हरित रहीं सदा।
सदियों से कथा इनकी चली आ रही,
असुर जलंधर थे इनके पति।
पतिव्रता थी वृंदा माता सदा पति का साथ दिया,
देवों से युद्ध में विजय हेतु सतत अनुष्ठान का संकल्प लिया।
पराजित हो रहे थे सब देव,हार ना पाया जलंधर,
बचा रही थी प्रभु की कृपा उसे,था अटूट विश्वास वृंदा के अंदर।
विचलित हो तब विष्णु जी ने सोचा एक उपाय,
धर कर भेष जलंधर का,वृंदा के समक्ष वे आये।
खुश थी वृंदा पति को सुयश मिला,धन्य विष्णु की माया, जिनके बल पर सौभाग्य मिला।
पूजा से ज्यों उठी वृंदा,देवों ने किया जलंधर का वध,
कटा शीश देख पति का वृंदा थी स्तब्ध।
समझ गयी वह विष्णु जी के छल को,
तत्क्षण पाषाण बनने का शाप दिया, नहीं रुकी वह एक पल को।
बहुत मनाया देवों ने,तब जाकर उसने श्राप वापस लिया,
पतिव्रता वृंदा ने,मृत पति संग अग्नि में समावेश किया।
पवित्र स्त्री की राख पर जन्मा इक हरा भरा पौधा,
श्री हरि ने परम भक्त वृंदा का नाम तब तुलसी रखा।
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )