अच्छाई अभिजिति सजे, अनभल का हो ध्वंस।
बद प्रतीक रावण जले, अवर न उस की डंस।
अवर न बद की डंस, हठी वह होता जाता।
दशमुख दहन उछाह, अग्र बद संस्तुति पाता।।
धन बल से दुतिवंत, अर्चिता हुई बुराई।
भीत मना संतत्व , झुकी सात्विक अच्छाई।।
अवर= अल्प, डंस = डंक,अग्र=पुन:
मीरा भारती,
पटना, बिहार।