पत्रकार

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

पत्रकारिता के कठिन डगर पर, पत्रकार को चलते हुए देखा।

खोज खोज कर सारी खबर को , दफ्तर में खुद भेजते हुए देखा।।

आता पसंद सलीका ए सबको, सम्मान बधाई पाते हुए देखा।।

पत्रकार के खुद अपनों को भी, गिरगिटिया रंग बदलते हुए देखा।।---(1)

मिलते ही मौका बिषधर के जैसा, समय-समय पर डंसते हुए देखा।

ना जाने कैसे लोग यहां पर , मतलब में हामी भरते हुए देखा।।

 मतलब के चक्कर में खुद अपने, बन छलिया  छलते हुए देखा।। 

रोटी के टुकड़े पर जीने वालों को ,सीने में खंजर भोंकते हुए देखा।।--(2)  

पत्रकारिता के जिस बगिया को, जिसे, निष्ठा लगन से सींचते हुए देखा।

नहीं मिटाए मिटने वाला ,वह लकीर खिंचते हुए देखा।।

कलम की ताकत के बलबूते ,दबी कुचली आवाज उठाते हुए देखा। 

शासन प्रशासन की बंद नजर को, एक आईना  दिखाते हुए देखा।।--(3)

चोरी और घुसखोरी बलजोरी पर नित, धारदार अपनी कलम है चलाता। 

सामाजिक समरसता बनाने के खातिर,जो बुझ ना सके वह मशालें जलाता।। 

बीज नफरत का जन-जन के उर में ना फूटे, राष्ट्र-प्रेम और भाईचारा सिखाता। 

राष्ट्र का चौथा स्तंभ सजग प्रहरी बन ,सदा सर्वदा राह सुंदर दिखाता।। --(4)

जब नारी के मान और सम्मान पर चोट , करके दरिंदा ठहाके लगाता।  

तब क़लम बांसुरी बनकर लगती है बजने, पत्रकार कन्हैया नजर सबको आता।।

 नारी की मर्यादा का बनके रक्षक, अपनी जान की बाजी लगाता।। 

सरस चिंगारी से ज्वाला बनकर बिचारा, खाकर के गोली अमर हो जाता।।--(5)

गौरीशंकर पाण्डेय सरस