आप द्रौण बनों या परशुराम आपकी मर्जी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

आप द्रौण बनों  या परशुराम आपकी मर्जी  ।

अगूंठा  मांगो,या सिखाये को भूलने का श्राप दो आपकी मर्जी।

मैं पूर्ण श्रद्धा से अपना शिष्यत्व  निभाती जाऊंगी ।

श्वासों के अंतिम क्षणों तक नमन करती जाऊंगी ।

जानती हूँ अब कोई महाभारत नहीं लिखी जाएगी।

कर्ण -अर्जुन सी कहानियाँ  नही दोहराई जाएगी।

चाह भी नही मेरी कि मैं इतिहास के पन्नों पर आऊं ।

अपनी गुरुभक्ति का समाज में बखान कर जाऊँ ।

मैं शांत सरिता सी चुपचाप बहती जाऊंगी ।

आपका  सिखाया सब ग्रहण करती जाऊंगी ।

जानती हूँ इतिहास में भी गुरु -शिष्य का ही बखान है ।

इन्ही की कहानियों से इतिहास महान है ।

पर मैं गुरु -शिष्या  का धर्म निभाऊंगी ।

इतिहास में नही,,नींव की ईट बन जाऊंगी ।

जिक्र नही होगा कही भी,कि मैं आपको गुरु मानती हूँ ।

आपके आशीषों से ही कोरे पन्नों को सजाती हूँ।

आशीषों से आपके मेरा दामन सदा आबाद रहे।

अर्जुन पर द्रौण और भीष्म पर परशुराम सा रहे।

गरिमा राकेश गौतम 'गर्विता'

 कोटा ,राजस्थान