युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
बीते युग कितने माधव
कालचक्र घूमता यूं ही राघव।
दूर तलक इक लक्ष्य है ठहरा
स्वप्न दर्श का प्रतीक्षारत गहरा।
सिद्ध होगा कब प्रत्येक पूजन
साधना आराधना शुद्ध अर्चन।
फूट पड़ी वेदना विकल व्याकुल
अश्रु आस का बिखरा आकुल।
नव श्रृंगार नवीन आकार
कब पहनूंगी मिलन के हार?
हिना हाथों में महकेगी कब
आराध्य अनुरागिनी थक गई अब।
सूना पहर सूनी हर बेला
एकांत हास का लग गया मेला।
जली बुझी मैं दामिनी दुःखमारी
लगा लो हृदय से कुंज बिहारी।
_ वंदना अग्रवाल "निराली "(लखनऊ)