युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
पता है मुझे
कुछ भी नहीं बदलने वाला
इन "शब्दों" से
आखिर कोरे शब्द ही तो हैं ,
कौन सहेजकर रखेगा इन्हें
किताबों में ..
कौन जांचेगा-पररखेगा इन्हें
इनकी वर्तनियों / मात्राओं को..
कौन करेगा इनका मूल्यांकन ..
डायरी भी कब तक संभाल पाएगी ,
..एक दिन मिट ही जाएंगें
यूं ही !!
फिर सामने देखा
पंक्तिबद्ध चींटियों को ,
बगैर ही किसी प्रतिवाद के
उनका अथाह श्रम
मानों बहुत कुछ कह गया हो मुझसे !!
उनके मौन-एकांत में
मैंने खोज लिए
अपने शब्दों के सारे "अर्थ"
बगैर ही कोई आत्म-विरोध किए हुए !!
उस दिन
मैनें स्वयं का ही मूल्यांकन किया
बखूबी से !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश