कर दो मेरा उद्धार प्रभु।।

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


वो पलक पावड़े बिछा रही थी, मिट्टी के प्रांगण पर।।

राह बुहार सजा रही थी कुटिया अश्रु के छावन पर।। 

हृदय खुशी से धड़क रहा था मन-भावन के आवन पर।

वो अंदर- बाहर जाती थी थिरक-थिरक कर गाती थी।।

दिव्य तेज सा चमक रहा था उसके मुख मंडल  पर । 

बज उठी दुंदुभी स्वागत में राम पधारे मेरे आंगन में। 

मैं कैसे करूँ सत्कार प्रभु बस मन में यही सवाल रहा। 

प्रेम रूप में जूठन खाया तुम कितने दीनदयाल प्रभु।

द्वार खड़ी हूं तेरे घर के प्रभु लेकर पूजा की थाल प्रभु। 

अब आ जाओ मेरे आंगन में कर दो मेरा उद्धार प्रभु।।


ममता राजपूत 

बिलासपुर छत्तीसगढ़