युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
इक दिवस वो था पुराना नैनों से नैना लड़े
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
प्रथम दृष्टि का स्पंदन खो गया सब चैन था
हृदय अब व्याकुल बड़ा तन मन बदन बेचैन था
स्मृति मुस्कान लाती लाज में नैना मुंदे
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
इक दिवस वो था पुराना नैनों से नैना लड़े
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
पढ़ने में मन अब न लागे साथ में किताब है
रहती कालेज की है जल्दी हाथ में गुलाब है
ढूंढती कातर निगाहें आज कुछ कहना उसे
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
इक दिवस वो था पुराना नैनों से नैना लड़े
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
मन में दृढ़ संकल्प लेके आज मैं दिल खोल दूं
सामने जब उसको देखूं आज मैं सब बोल दूं
पर मृदुल मुख देख विस्मित अब तृषित रहना मुझे
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
इक दिवस वो था पुराना नैनों से नैना लड़े
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
चाहते भरकर निगाह में दिल में भरते आह हैं
सामने हो प्यारा प्रिय अलका मिलन की चाह है
मिलन के सपने सुहाने जुगत पाने की उसे
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
इक दिवस वो था पुराना नैनों से नैना लड़े
मन में होती गुदगुदी फिर मौन में बैना जड़े।
डॉ0 अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।