है तुमसे आशा, उर अभिलाषा ,ईश्वर मेरे, गिरधारी |
अब दर्शन दे दो, मेरी सुन लो, आस लगी है, करतारी ||
जय नटवर नागर, गुण के आगर,करना पूरी,अभिलाषा |
सब मानव जाने,वेद बखाने, निज मन धारे, है आशा ||
हो पूरी आशा, मिटे पिपासा,ज्ञान चक्षु खुल, अब जाये |
हे घट -घट वासी, तू अविनाशी,दर्शन से मन, हर्षाये ||
कर संयम वाणी, जीवित प्राणी, अधरों से तव,मधु बरसे |
जो अकड़ा -जकड़ा,तन है लकड़ा,नैना उसके, क्यूँ तरसे ||
मन को समझाना, कष्ट मिटाना, पीर हरेंगे, रघुराई |
ब्रम्हाण्ड निकाया, उसकी माया, वो ही जाने, सुखदाई ||
वो शक्ति प्रदाता, जनसुख दाता, भाग्य विधाता, जीवों का |
वह मार्ग प्रदर्शक, है सब दर्शक, शोक विनाशक,भावों का ||
मन घोर निराशा, तुझसे आशा, करती दुनिया, है सारी |
भव सिंधु मुरारी, शरण तिहारी, निज शीश रखे, नर नारी ||
हे सुख दाता, सिद्ध विधाता, जग के पालक, नमन हरे |
मेरी यह आशा, न हो निराशा, उर अभिलाषा, पूर्ण करें ||
ये जीवन नैया, पार लगैया, ईश्वर मेरे, हितकारी |
हे मन सुखदायक, जग के नायक ,पार लगाओ , गिरधारी ||
मन कहता जाता, भाग्य विधाता, जग के दाता, उपकारी |
है अंतर्यामी, जग के स्वामी ,भव पार करो, मनुहारी ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश