दूसरों के लिए जीने बाले को
मिलता है सिर्फ दर्द
उस विष को पीकर भी जब वह चुप रहता है
तब दुनियां उसकी चीखें सुनने का प्रयास करती है
मानो किसी अच्छे वृक्ष के धोखे में
वह कंटीली झाड़ियों को सींचता रहा हो
और झाड़ियों को भी उसने अपनी किस्मत मानकर
सहर्ष स्वीकार कर लिया हो
पर कांटों का काम.........
वाह री दुनिया
एक मां
अचानक भेंट हुई थी उससे मेरी
कलेजे पर पत्थर रखे मुस्कुरा रही थी वह
कुंवारी मां
जिसने किसी अनजान
और
तिल तिल मरते जीवन के लिए
अपने जीवन की बाजी लगा दी
थी न मूर्ख
मूर्ख ही नहीं महामूर्ख थी वह
कोई करता है क्या ऐसा
नहीं न
मगर उसने किया
लोगों ने समझाया
पछताएगी
रोयेगी
ज़िन्दगी खराब कर लेगी
ठीक नहीं है तेरा निर्णय
मगर
वह कहां मानने बाली थी
उस पर तो जैसे भूत ही सवार था
वह सब करने का
बच्चे को पाला पोसा
कितने कष्ट सहे
पर उफ नहीं की
कितनी ही ठोकरें मुस्कुराते हुए सह गई
बस एक ही जिद थी
मेरा लाड़ला एक अच्छा इंसान बने
बना
वह भी जान छिड़कता था मां पर
परन्तु समय बीता.........
आज का दिन
उसके जीवन का सबसे आनन्द का दिन था
जब वह डोली लेकर पहुंची
अपने लाड़ले के लिए चांद खिलौना लेने
चांद उसके आंगन में उतरा
वह भी फूली नहीं समा रही थी
उसे लगा मानो स्वर्ग उसके आंगन में उतर आया है
मगर समय बदला
परिभाषाएं बदलने लगीं
सूरज ने तपिश फैलाई
घना कुहासा छंटा
वह ठगी सी देखती रह गई
उसके आंगन में चांद नहीं
सूरज था
जिसकी तपिश में जीवन की खुशियां
झुलसती जा रही थीं
उसकी झुलसती
और
शिथिल होती इन्द्रियां
क्या करे
अब न घर है
न द्वार
न कोई साथी
बस है तो केवल उसका अकेलापन
मैंने देखा है
उसे
अपने आंसुओं से सींच सींचकर
जीवन वृक्ष के लिए दुआ करते
आज भी
आखिर रास्ते तो उसी ने बन्द किए थे न
जीवन के
शायद यही नियति थी।
देवयानी भारद्वाज
उसायनी फीरोजाबाद