बढ़ते उम्र के साथ
चाहतों का सिलसिला
थमता देख मन घबराया
रूठते ख्वाब को
जिम्मेदारी का जाम
पहनाना मजबूरी नहीं
जरुरत बनती गई।
चाहते उम्र के हर
पड़ाव में बदलती देख
मन को इसकी
स्वीकृति देना और
कुछ लम्हों को
सुकुन के बनाने में
जिंदगी तरासने के
सिलसिले को
बढ़ती उम्र की
प्राथमिकता बनाना
जरुरी सा लगने लगा
प्रियंका पेडिवाल अग्रवाल
विराटनगर नेपाल