'पद्मश्री' हलधर नाग की कोसली कविताएँ पांच विद्वानों द्वारा पीएचडी शोध का विषय बन चुकी हैं



 आधुनिक कबीर =ये हैं विख्यात लोककथा लेखक व लोक कवि हलधर नाग, घेंस, बारगढ़, ओडिसा निवासी जिन्हें "लोककवि रत्न" व 2016 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा "पद्मश्री" पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। प्रतिभा, विनम्रता, सहजता की ऐसी प्रतिमूर्ति को नमन।


मात्र तीसरी कक्षा उत्तीर्ण, 'पद्मश्री' हलधर नाग की कोसली कविताएँ पांच विद्वानों द्वारा पीएचडी शोध का विषय बन चुकी हैं।



70 वर्षीय हलधर नाग की "कोसली" भाषा की कविता पाँच विद्वानों के पीएचडी शोध के विषय होने के साथ साथ संभलपुर विश्वविद्यालय इनके सभी लेखन कार्य को हलधर ग्रंथावली -2 नामक दो पुस्तक के रूप में अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर चुकी है। इसके अलावा इनकी 17 पुस्तक व दो ग्रंथावली प्रकाशित हो चुकी हैं।


नाग, बिना किसी किताब का सहारा लिए, अपनी कविताएँ सुनाने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें अपनी स्वरचित समस्त लोक कथाएँ व लोक कविताएँ कंठस्थ हैं। नाग के एक करीबी सहयोगी के अनुसार, वह रोज कम से कम तीन से चार कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जहां वह कविता पाठ करते हैं।


नाग का जन्म 31 मार्च 1950 में संभलपुर से लगभग 76 किलोमीटर दूर, बारगढ़ जिले के घेंस नामक ग्राम के एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वह 10 साल के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिस कारण वह तीसरी कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई जारी नही रख सके। जीवनयापन हेतु वे एक मिठाई की दुकान पर बर्तन धोने का काम करने लगे। दो साल बाद, उन्हें एक स्कूल में खाना बनाने का काम मिल गया, जहाँ उन्होंने 16 साल तक नौकरी की।


स्कूल में काम करते हुए, उन्होंने महसूस किया कि उनके गाँव में बहुत सारे स्कूल खुल रहे हैं। नाग ने टाइम्स ऑफ इंडिया से एक बातचीत के दौरान कहा था, “मैंने एक बैंक से संपर्क किया और स्कूली छात्रों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का ऋण लिया।”



अब तक कोसली में लोक कथाएँ लिखने वाले नाग ने 1990 में अपनी पहली कविता लिखी। जब उनकी कविता ‘ढोडो बरगाछ’ (पुराना बरगद का पेड़) एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई, तो उन्होंने चार और कवितायेँ भेज दी और वो सभी प्रकाशित हो गए। इसके बाद उन्होंने दुबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी कविता को आलोचकों और प्रशंसकों से सराहना मिलने लगी।


“मुझे सम्मानित किया गया और इसने मुझे और लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने अपनी कविताओं को सुनाने के लिए आस-पास के गांवों का दौरा करना शुरू कर दिया और मुझे सभी लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली,” उन्होंने बताया।


यहीं से उन्हें ‘लोक कवि रत्न’ नाम से जाना जाने लगा।


उनकी कवितायें सामाजिक मुद्दों के बारे में बात करती है, उत्पीड़न, प्रकृति, धर्म, पौराणिक कथाओं से लड़ती है, जो उनके आस-पास के रोजमर्रा के जीवन से ली गई हैं।


“मेरे विचार में, कविताओं में वास्तविक जीवन से मेल और लोगों के लिए एक संदेश होना चाहिए,” नाग ने कहा।


हमेशा एक सफेद धोती और नंगे पैर चलने वाले नाग को, उड़िया साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2016 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।